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चार्टर्ड अकाउंटेंट नितिन कौशिक का कहना है कि ₹1 लाख की मासिक सैलरी आपके लिए या तो वित्तीय स्वतंत्रता (Financial Freedom) ला सकती है या फिर आपको कर्ज़ के जाल में फँसा सकती है।
सारा खेल आपकी Financial Discipline और खर्च करने की आदतों पर निर्भर करता है।
अगर आप ₹1 लाख कमाकर ₹70,000 खर्च करते हैं, तो हर महीने ₹30,000 बचाकर निवेश कर सकते हैं।
ये बचत कंपाउंडिंग के जरिए आने वाले सालों में करोड़ों में बदल सकती है।
👉 लेकिन अगर आप ₹1 लाख की कमाई पर ₹1.2 लाख का खर्च EMI और क्रेडिट कार्ड से करते हैं, तो आप हर महीने ₹20,000 कर्ज़ में जाएंगे।
➡️ इसका मतलब कंपाउंडिंग आपकी संपत्ति बनाने के बजाय आपके कर्ज़ को बढ़ाएगी।
ज़्यादा खर्च = थोड़ी देर की खुशी, लेकिन जीवनभर का कर्ज़।
कम खर्च = थोड़ी देर की असुविधा, लेकिन जीवनभर की स्वतंत्रता।
👉 यानी “आज त्याग करो, कल चैन से जियो।”
लोग सैलरी बढ़ने पर तुरंत कार, बड़ा घर या लग्ज़री छुट्टियों में पैसा उड़ाते हैं।
लेकिन कौशिक का कहना है कि जब तक कैश फ्लो आराम से न संभल जाए, तब तक ऐसे खर्चों से बचना चाहिए।
दिखावा छोड़कर धीरे-धीरे संपत्ति बनाओ।
एसेट्स (जमीन, सोना, इक्विटी, डिविडेंड देने वाले शेयर, रेंटल प्रॉपर्टी) में निवेश करो।
आय के सिस्टम बनाओ – जैसे किराया, डिविडेंड, रॉयल्टी।
याद रखो: पैसा बनाना आसान है, लेकिन उसे संभालना (Wealth Preservation) और भी मुश्किल है।
“अपनी आय से नीचे जीना तकलीफ़देह हो सकता है…
लेकिन हमेशा अपनी आय से ऊपर जीना ज़िंदगीभर का कर्ज़ देता है।”
✅ सार यही है:
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कंपाउंडिंग + धैर्य (Patience) = असली धन